3/14/2020
कोरोना मार्केट मंदी सोशल मीडिया और जागरूकता
3/07/2020
शोषण रुके तब सार्थक होगा महिला दिवस
7/14/2019
प्रेम विवाह:- सुखांत या समस्या का प्रारंभ
एक सवर्ण लड़की ने दलित के साथ शादी कर ली,ओर उसे अपने पिता से खतरा है।ये एक न्यूज को ब्रेकिंग न्यूज़ बना दिया गया।लेकिन यदि उसमे से सवर्ण ओर दलित शब्द निकाल दिए जाएं तो खतरा टल जाएगा।ऐसा लड़की को भी लगा और उसके सपोर्ट में मीडिया आ गई।वैसे भी क्रिकेट का बुखार उतर गया तो मीडिया बताए भी क्या।
अब इस घटना को दूसरे रूप से सोचते है जब लड़की होती है तो उसके जन्म के साथ ही माता पिता सपने देखना शुरू कर देते है।उसकी मुस्कराहट बनी रहे इसके लिए खुद के दर्द को कई बार मुस्कराहट के पीछे छिपा लेते है।जैसे जैसे बेटी बड़ी होती है माता पिता के सपने भी बड़े होने लगते है उनकी रोजमर्रा की जिंदगी में बेटी की पढ़ाई उसकी शादी की बाते होना शुरू होती है और साथ ही शुरू होता है एक कुबेर के खजाने का निर्माण का कार्य बेटी के लिए ऐसा घर देखना जहाँ वो मायके से ज्यादा आराम से रहे ऐसे परिवार को ढूंढना जो उसे पीहर के परिवार के समान या उनसे ज्यादा प्यार करे,उसकी छोटी छोटी खुशियों की पूर्ति के लिए कन्या धन की व्यवस्था करना और खुद के पास धन नही है तो कहा से कितना उधार ला सकते है कैसे लड़के वालों की सब इच्छाओं को पूरा कर सके उस पर ध्यान केंद्रित हो जाता है।
ओर बेटियां भी बहुत प्यारी होती है उन्हें कोई भी चीज चाहिये तो मांग लेगी ना मिले तो जिद करेगी और उन्हें समझा दे कि कुछ समय बाद लाकर देंगे तो मान भी जाती है,क्योकि उसे विश्वास होता है चाहे एक बार मे या कुछ समय बाद उसके माता पिता उसकी इच्छा अवश्य पूरी करेंगे।
लेकि यही बेटियां जब किसी से प्यार करने लगती है तो क्यो खुद से ही ये मान लेती है कि उसके प्यार को स्वीकार नही किया जाएगा।ये क्यो भूल जाती है कि जिद तो बचपन मे भी एक ही बार मे पुरी नही हुई तो इतनी बड़ी जिद ऐसे ही कैसे मान लेंगे।
ओर फिर उसी डर से भावुकता के क्षणों में एक गलत फैसला ले लेती है(मेरी नजरो में घर से भाग कर शादी करना सही फैसला हो ही नही सकता),ओर फिर बिना कहे घर छोड़ कर चली जाती है।बिना ये सोचे कि उनका भविष्य क्या होगा ।
ऐसी शादी के बाद नॉर्मली क्या होता है वो में आपको बताती हु।ओर ऐसा मेने कई घरों में देखा है जहाँ पर लड़कियों ने लव मैरिज की।ऐसे केस शादी के कुछ समय बाद ही प्यार के दम तोड़ते ही बन्धन लगने लगे जाते है और फिर कॉउंसिल के लिए आते है उन्ही का सार मेने शब्दो मे लिखने का प्रयास किया है।
मेने कई केस देखे है जहाँ लड़कियों ने ये भी नही देखा कि लड़का कुछ कमाई भी करता है या नही उसका पारिवारिक माहौल कैसा है,वो शादी करके रहेगी कहाँ।तब लड़की को ये लगता है प्यार से पेट भी भर जाएगा लेकिन ऐसा होता नही है।
अक्सर घर से भागी हुई लडकिया जब मिलती है तो वो अपने पेरेंट्स से बात भी नही करना चाहती है,कुछ केस में तो ये भी देखा गया है कि लड़की ने पेरेंट्स को पहचानने से भी इंकार कर दिया।
सोचने वाली बात ये है कि जिस लड़की के साथ उसके जन्म से पेरेंट्स गर्मी में छांव बन कर बरसात में छाता बन कर सर्दी में गर्म लिहाफ बन कर रहे वो कैसे उस बच्ची का बुरा सोचेंगे।यदि उस लड़की ने बचपन मे कोई वस्तु चुराई तो एक बार उसे समझाया होगा 2दूसरी बार गलती की तो उसे डांटा होगा और ना सुधरने पर कभी हाथ भी उठाया होगा क्योंकि वो उस लड़की की भलाई चाहते है।
एक लड़की जिसे 18 साल तक एक स्वप्न के रूप में बड़ा किया वो यदि गलत कदम उठाये तो क्या माता पिता का इतना भी हक़ नही की वो उसे डांट सके उसे समझा सके अपने दिल के दर्द को गुबार को निकाल कर बेटी को बता सके कि वो कहाँ गलत है।
लगभग 60% केसेज में लड़की की इस हरकत से माता पिता अपने ही दायरे में सिमट जाते है,खुद ही अपनी परवरिश पर सवाल उठाना शुरू कर देते है और मानसिक अवसाद के उन क्षणों में सहज ही हार्ट की कोई बीमारी पेरेलिसिस कोमा ट्रोमा ओर कई बार तो हार्ट फेल भी हो जाता है।
उनकी बीमारी को देख कर कई बार परिवार के सदस्य लड़की को बुलाते है कि एक बार आकर मिल लो शायद उसके आने से पेरेंट्स ठीक हो जाये और ये भी देखा गया है कि ऐसे समय मे भी लडकिया खुद की शर्तो पर आती है जैसे मुझे कोई कुछ नही कहेगा मेरे पति को सभी सम्मान देंगे ओर भी कई बातें।
परिवार वालो के पास कोई ऑप्शन नही होता क्योंकि उनके लिए पेरेंट्स ज्यादा जरूरी होते है।
लड़का कमाऊ है तो ठीक नही तो लड़की भी जॉब करती है वो बेटी जो पानी का गिलास भी आसानी से भर कर नही पीती अब घर का सारा काम करके जाब भी करती है।शादी के एक दो साल बाद जब प्यार का बुखार उतरता है तो खुद को ठगा हुआ महसूस करती है और फिर उसी बरगद की छांव में पहुँचती है जिसे पेरेंट्स कहते है।बेटी के आंसू जब बचपन में नही देखे गए तो अब कैसे देख सकते है।
ओर फिर बेटी की तकलीफों को दूर करने में माता पिता लग जाते है।कई बार तो बेटियां लिख कर भी देती है कि उन्हें माता पिता से कुछ नही चाहिए ना जमीन ना जायदाद प्यार भी नही।वही बेटिया कुछ समय बाद अपना हक लेने आ जाती है और अपने प्यार से पेरेंट्स को यकीन दिलाती है कि उनकी शादी उनके द्वारा लिया गलत फैसला था और पेरेंट्स जानते है कि ये झूठ बोल रही है फिर भी बेटी के मोह में उसकी हेल्प करते है।
जब बेटी भाग जाती है तो पेरेंट्स उनको सामने देख कर गुस्सा हो सकते है दुखी मन से यदि वो ये भी कह दे कि काश तू पैदा ही ना हुई होती या में तुझे मार देता तो वो उनकी मानसिकता स्थिर ना होने जे कारण निकले शब्द भी हो सकते है,ये बात भी लड़किया नही समझती ओर ऐसे वीडियो भेजती है जिसमे उन्हें अपने पेरेंट्स से जान का खतरा है।इसलिए कभी भी माता पिता को मनाने का प्रयास करे एक बार 2 बार नही जितनी बार करना पड़े करे आपका प्यार सच्चा है तो वो अवश्य ही मानेंगे क्योकि वो आपसे प्यार करते है।उनके विश्वास को घात करने से अच्छा उनके विश्वास पर खरा उतरने का प्रयास करे सफलता जरूर मिलेगी
कोई भी माता पिता अपनी बेटी की शादी बेरोजगार लड़के से नही करेगा उससे उम्र में बड़े लडके से भी नही करेंगे और यदि लड़का पहले से शादीशुदा है तो भी नही करेगा इसमें वो कही गलत भी नही है।अपनी बेटी के सुखद भविष्य की कामना करने वाले माता पिता के प्यार का कभी फायदा नही उठाना चाहिए उनके दुखी मन से निकले शब्द कभी व्यर्थ नही जाते।
आज के बच्चो को सोचना चाहिए कि माता पिता के प्यार के आंगन में बबुल का नही आम का पौधा लगाना चाहिए जिससे आने वाले समय मे आत्मसम्मान प्यार और विश्वास के फल उग सके।
नही तो शादी के कुछ समय बाद ही समझौते से भरा जीवन शुरू हो जाएगा,फिर या तो जैसे हालात है वैसे जिओ या फिर काउंसलर ओर कोर्ट के चक्कर लगाए
जीवन आपका है फैसला भी आपको ही करना है यो भी सोच समझ कर फैसला करे लव मैरिज करने से पहले खुद का भविष्य सिक्योर करे।ये भी देखे की लड़का अच्छी नोकरी करता हो उसकी पगार इतनी हो कि आपको खुश रख सके ऐसा नही की कॉलेज से निकले और शादी कर ली।लड़के का नेचर जरूर एक बार चेक कर ले कि कही फ्लर्टिंग उसकी आदत तो नही वरना कुछ समय बाद आपकी जगह कोई और ले लेगा।
6/09/2019
चार अंधे ओर हाथी -हमारी सोच और हम
चार अंधे ओर हाथी
एक बार चार अंधे लोग कही जा रहे थे तभी वहां एक हाथी आता है।
चारो अँधे उस हाथी को पकड़ते है एक सूंड पकडता है एक पूँछ पकड़ता है बाकी 2 उनके पैर पकड़ते है।
अब चारो को पूछा हाथी कैसा होता है जिसने पूंछ पकड़ी उसे वो पतला लगा जिसने सूंड पकड़ी उसे वो नीचे से घुमावदार लगा बाकी 2 को खंबे के जैसा लगा।लेकिन जिसके आंखे थी उसके लिए हाथी की परिभाषा कुछ और थी।
ठीक इसी तरह हमारे जीवन मे भी हम उसे ही सही मानते जितना हमे समझ मे आता है,लेकिन सत्य उतना ही सीमित नही होता है।
हमे हमारे दृष्टिकोण को व्यापक करना होगा, ओर अंधो की तरह नही वरन आंख वालो की तरह हर परिस्थिति ओर संभावना को ध्यान में रखना चाहिए,ओर एक ही बात को पकड़ कर नही बैठना चाहिए बल्कि सिक्के के दूसरे पहलू को भी देखना चाहिए और समझना चाहिए।
हमारी सोच हमारे वर्तमान और भविष्य दोनो को नकारात्मकता की ओर भी ले जा सकती है और वही सोच व्यापक हो जाये तो सकारात्मक जीवन से अपने साथ सबके जीवन मे खुशियों को भर सकती है।
5/08/2019
रिश्तो को खोखला करने वाले दीमक से बचे।
जब परिवार में सामंजस्य न हो,रिश्तो में समरूपता न हो ,पक्षपात नेअपनी जड़ें फैला दी हो,व्यवसाय में पार्टनर के ओर आपके बीच किसी ने गलतफहमी बढ़ा दी हो,एक कम कार्य करे और एक ज्यादा जिससे दूरी बढ़ रही हो,अपने आस पास मे रहने वाले कुछ लोगो को आपके सकारात्मक कार्यो के सामने उनको अपनी अहमियत कम लगे और बातों को गलत रूप में आपके आस पास मे फैलाना शुरू करे तो ऐसे लोगो से तत्काल संभल जाइए क्योकि ये आपके जीवन मे दीमक का कार्य करने वाले लोग है।
ये वो लोग है जो
छोटी छोटी बातों को गलत रूप में प्रस्तुत करके दुसरो की खुशहाल जिंदगी में जहर भरने का कार्य करते है।
ऐसे लोग भूल जाते है कि वो अपनी ही इज्जत दुसरो की नजरों में कम कर रहे है।
फिर रिश्ते सिर्फ नाम के लिए निभते है,दिलो में जो दूरियां उनकी हरकतों से आ जाती है उन दूरियों समाप्त करना दुष्कर हो जाता है।
आप जो बो रहे हो भविष्य में वही आपको काटना है।
ओर उन लोगो को अपनी सोच बदलनी चाहिए जिन्हें ये लगता है कि ऐसे लोग मेरे शुभचिंतक है,
ऐसे लोगो से संभल कर रहे जिनके कारण आपके पारिवारिक जीवन मे सामाजिक जीवन मे व्यवसायिक जीवन मे कटुता आती है।
क्योकि कुछ लोग कभी नही चाहेंगे कि आप खुश रहे इसलिए स्वयं मूल्यांकन करे कि जिन लोगो की बातों ने आपको भडकाने का कार्य किया और आपने झगड़ा किया क्या सच मे वो बाते महत्वपूर्ण थी,या सिर्फ उनके अहम को संतुष्टि मीले इसलिए आपने झगड़े किये।
या आप ये बता सके कि आप किसी से डरते नही,आप जोरू के गुलाम नही,आपके जितना अच्छा व्यापारी कोई नही।
तो अपने अहम से भी मुक्त होना सीखिए,उनको साथ लेकर चलिये जो आपके सुख से ज्यादा आपके दुख में साथ खड़े होते है,जो आपसे प्यार करते है,जिनकी उन्नति भी आपकी उन्नति से जुड़ी है।
फिर देखिए रिश्ते महकने लगेंगे, हा कुछ लोगो को दर्द जरूर होगा आपको खुश देख कर।
लेकिन किसी के अहम की तुष्टि आपकी खुशीयो की कीमत नही होनी चाहिए।
अपनी सोच को इसलिए संकुचित ना करे कि कही सामने वाला बुरा ना मान जाये उसे मायूसी ना मिले,क्योकि यदि उस पर आपका वॉर खाली गया तो वो दूसरे को ढूंढ लेगा लेकिन आपने समझदारी से सामने वाले को ये अहसास दिला दिया कि आपके पास इन बातों के लिए अनावश्यक वक्त नही है,ओर ना ही आपको ऐसे शुभचिंतको की जरूरत है जो आपके रिश्तो को खोखला बनाना चाहते है तो आप ओर आपसे जुड़े लोग सभी खुश रह सकते है।
2/27/2019
देश के प्रति क्या हो हमारी जिम्मेदारी।
अखंड भारत की ज्योत को जलाए हुए माँ भारती सदियों से अपने सीने पर कई घाव लिए हुए है।प्यार के प्रतीक लाल रंग से माँ भारती की चुनरी को वीरो ने अपने समर्पण और भक्ति से अपने खून से रंगा है,ओर ये रंग किसी दुकान पर या मॉल में नही वरन देश के प्रति जोश और जुनून से बनता है।
लेकिन अब देश की आबोहवा बदल रही है,कुछ ऐसा है जो हमारे समर्पण पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है।कही ना कही हम स्वयं की सोच को सब पर थोपने की कोशिश करने में लग गए,अपने वैचारिक स्तर को तर्कणा शक्ति से मजबूत करने में लग गए।
हमारे ऊपर सदियों से विदेशी ताकतों ने हमले किये, राज किया क्योकि हम एक नही थे फुट डालो ओर राज करो की कथाओं से भारत का इतिहास भरा पड़ा है।लेकिन हमने उससे क्या सिख ली ये एक बहुत बड़ा प्रश्न है।
जातिवाद के नाम से एकता खंडित न हो जाये:-तब भी हमे जातिवाद के नाम पर भड़काया जाता था,एक दूसरे की कमियों को उछालना सिखाया ओर आज भी कुछ लोग यही कर रहे है।देश की हवा में जातिवाद के जहर को घोल रहे,साम्प्रदायिक दंगे करवा रहे है।धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र जो हमारी संस्कृति और गौरव है उसको नष्ट करने का प्रयास अवांछित ताकते कर रही है।हमे हमारे ही अपनो के खिलाफ खड़ा कर रही है जिससे हम आपस मे ही लड़ते रहे मरते रहे,हमारे देश के युवाओं को गुमराह किया जा रहा है,उच्च शिक्षित युवा विदेशो में अपना भविष्य देख रहे है तो सामान्य युवा में कुछ को जातीय भक्ति के नाम पर देश की व्यवस्था को भंग करना सिखाया जा रहा है।
सरकारी कार्यकर्ता किसी पार्टी का नही होता:-जब भी किसी सरकारी तंत्र में कोई घोटाला होता है कोई अधिकारी रिश्वत लेते या गलत कार्य करते पकड़ा जाता है तो हम ये नही कहते कि अमुक पार्टी का सरकारी कार्यकर्ता पकड़ा गया,वरन उस सरकारी तंत्र का नाम लेते है जिसमे वो कार्य करता है जैसे नगरपालिका, पुलिस, शिक्षा विभाग टेक्स विभाग यहाँ तक कि सेना भी।
इसका सीधा अर्थ है कि जब कोई व्यक्ति सरकारी विभाग से वेतन प्राप्त कर रहा है तो वो उच्च अधिकारी हो या क्लर्क वो किसी पार्टी को नही देश की सरकार ओर सरकारी कार्यालय का प्रतिनिधित्व करते है।लेकिन कुछ लोगो को या तो इसकी जानकारी नही है या उन्हें गुमराह किया जाता है इसलिए वो कुछ सरकारी कार्यालयों को पार्टी विशेष से जोड़ देते है।सरकारी कार्यालय पार्टी विशेष से नही वरन देश की जनता द्वारा भरे जा रहे टेक्स से चलते है।इसलिए वो सरकारी तंत्र और वहाँ कार्य करने वाले लोग सभी पार्टी के लिए समान होते है।हर सरकारी तंत्र में कुछ बेईमान लोग हो सकते है तो ईमानदार लोगो की भी कमी नही होती,ये हम अपने विवेक से निश्चित करे की कोंन अधिकारी कैसा है।
कुछ राजनेता सीधे है:-ये भी एक भ्रम है कि राजनीति सीधे लोग भी कर सकते है।हम स्वयं आकलन कर की हम जहाँ रहते है वहाँ के वार्ड के चुनाव में भी हम उस व्यक्ति को वोट देते है जिसका वार्ड में रौब हो,जिससे वो वार्ड के विकास के लिए हिम्मत के साथ कार्य कर सके ओर उसके रौब ओर व्यक्तित्व को देख कर कोई भी कार्य समय से पूर्ण हो जाये। जिस समाज व्यवस्था का हिस्सा हम है वहाँ भी हम ऐसा अध्यक्ष चुनते है जो तन मन धन से समर्पित कार्यकर्ता हो और जिसकी एक पहचान हो जिसके कारण कभी भी किसी कार्य मे रुकावट ना आये।
तो हम इस भ्रम में ना रहे कि कोई नेता सीधा है या भोला है, या आम नागरिक की तरह है,बल्कि हम अपने विचारों के तराजू में उस व्यक्तित्व को तोले ओर स्वयं निर्णय करे।और ये कहे कि ये राजनेता इन मानक मूल्यों पर इतना खरा उतरता है।
अभिव्यक्ति की आजादी को निम्न स्तर पर ना ले जाये:-आप किसी के विचारों से सहमत हो या ना हो कोई आपके विचारों से सहमत हो या न हो, लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी सबको है।जब हम किसी व्यक्ति को सामने से देखते है तो उसके दो कान दिखाई देते है लेकिन जब उसे दांये या बांये से देखते है तो एक ही कान दिखाई देता है, इसका मतलब ये नही की दोनों में से कोई एक गलत है।ये दोनों के खड़े रहने की जगह पर निर्भर है कि वो क्या देख रहे है।इसी तरह आपके विचार या आपकी किसी के प्रति निष्ठा आप अपनी जगह से देखते है लेकिन दूसरे भी वही खड़े होकर देखे जरूरी नही।ऐसे समय मे हम जो बोलते है या लिखते है वो हमारी वैचारिक सोच को दर्शाता है हमारी परिपक्वता को लक्षित करता है इसलिए वैचारिक सोच के घनी बनिये ओर शब्दो के स्तर से स्वयं को नीचे गिराने से बचिए। आप अपनी अभिव्यक्ति बिना भाषा के स्तर को गिराए भी कर सकते है।
मतभेद को मनभेद में ना बदले:- कई बार हम जिन्हें अपना मानते है उसके प्रति कुछ गलत सुनना पसंद नही करते यही से मतभेद शुरू होते है,मतभेद हो तो कोई तकलीफ नही लेकिन जब ये मतभेद मनभेद में परिवर्तित हो तो आपसी रिश्ते बिगड़ने शुरू हो जाते है,ओर अनायास ही हम उस व्यक्ति के प्रति एक मोर्चा खोल लेते है जो हमारे ही परिवार का हिस्सा है।जिससे आपसी रिश्तों में टकराव की स्तिथि उतपन्न होने लग जाती है और हम रिश्तो के मूल्यांकन करने प्रारम्भ कर देते है।ऐसी स्तिथि से बचना चाहिए।आपस मे साथ मिलकर ही देश के सकारात्मक विकास में अपना योगदान दे सकते है।मनोभेद के कारण ही विदेशी ताकते कुछ लोगो को गद्दार बनाने में लग जाती है।इसलिए हमारे अपनो का हम सम्मान करना सीखें।
सोशल मीडिया की पोस्ट को शेयर करने से पहले सोचे:-आज हम सब पर यदि सबसे ज्यादा कोई हावी है तो वो है सोशल मीडिया।कुछ अवांछित तत्व यहां बहुत ज्यादा सक्रिय है और विभिन्न प्रसिद्ध नाम से ये पोस्ट करते है।ओर इनकी पोस्ट फोटोशॉप से मिक्स करके बनाई हुई भी हो सकती है,वीडियो में भी डबिंग आवाज हो सकती है।लेकिन कई बार बिना सोचे समझे भावनाओं में बह कर हम ऐसी पोस्ट को शेयर करके उसकी वेल्यू बढ़ाने में लग जाते है।जिसका सीधा खामियाजा देश को भुगतना पड़ता है।इसलिये कोई भी पोस्ट आप पड़ते है तो जरूरी नही की उसे शेयर भी करनी ही है।और ऐसा भी नही है कि आपको वो गयं सबसे पहले अपने दोस्तों को देना ही है।उस पोस्ट पर पहले चिंतन करे यदि वीडियो है तो पोस्ट करने वाले को बोले कि पूरा वीडियो पोस्ट करे, क्योकि आप द्वारा शेयर किया अधूरे ज्ञान की भरपाई कई बार सेना को भी करनी पड़ सकती है,किसी निर्दोष को भी करनी पड़ सकती है।इसलिए पहले संबंधित घटना की पूरी जानकारी प्राप्त कर ले।।
ये देश हमारा है और हम इस देश के है।इसलिए हमारे कार्यो से देश के गौरव में वृद्धि हो,देश का विकास हो,ओर वृहद गणतांत्रिक देश के रूप में भारत विश्व मे सबसे अग्रिम में खड़ा हो इसलिये अपना सहयोग से देश को गति प्रदान करनर में करे,ना कि केकड़े बन कर एक दूसरे की टांग खींच कर विकास में बाधक बन।
*ये आकेख किसी भी राजनीतिक पार्टी को सपोर्ट नही करता।ये सिर्फ जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से लिखा गया है।
11/21/2018
व्यक्ति समाज से है,समाज व्यक्ति से नहीं।
समाज व्यक्ति से या व्यक्ति समाज से ये एक ऐसा प्रश्न है जिसने कई परिभाषा को बदल दिया।
'क्या है समाज ओर क्या है उसकी उपयोगिता' हमारे जीवन मे,हम सिर्फ बोलते है सुनते ही कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है वो समाज मे रहता है,उसकी व्यवस्था में सहयोग करता है,उसके विकास में सहभागी बनता है,निज उन्नति को समाज की उन्नति समझता है।
लेकिन आज के परिवेश में ये सब में बदलाव आया है।
कई बार कुछ लोग बोलते है हमने समाज के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है,उसके अर्थ विकास में सहयोग किया है,हमने लोगो को जोड़ा है,अर्थात कही न कही उन्हें ये लगता है कि यदि वो नही होते तो समाज का विकास असम्भव जैसा था,लेकिन ऐसा कुछ नही होता क्योंकि यदि आप नही होते तो कोई और होता,ये आपका सौभाग्य हो सकता है कि आप थोड़े पहले पैदा हो गये तब व्यवस्था जन्म ही ले रही थी तो आपने उसका रखरखाव किया ठीक वैसे ही जैसे एक केअर टेकर करता है।आप मकान नही मकान की ईंट है।यदि कोई व्यक्ति अपने समय श्रम और अर्थ के सहयोग से समाज के विकास में अपना योगदान देता है तो उसे निस्वार्थ भाव से ये करना चाहिए,नई प्रतिभा के जन्म के साथ ही उसे आगे बढ़ाने में भी उन्हें अपना योगदान देना चाहिए,अपने बड़पन्न का परिचय एक आदर्श के साथ प्रस्तुत करना चाहिए।समाज की अपनी व्यवस्था है जहा राजनीति ओर रणनीति नही विश्वास की नीति महत्वपूर्ण होती है।राष्ट्र संत आचार्य तुलसी के शब्दो मे जो समाज के विकास के कार्य मे अपना योगदान देता है वो कार्यकर्ता होता है और कार्यकर्ताओं को कभी केकड़ा प्रवृत्ति नही रखनी चाहिए,जिस समाज मे केकड़ा प्रवृत्ति जन्म ले उस समाज का विकास रुकने की संभावनाएं बढ़ जाती है।
कहते है
"तूफान में अक्सर कश्तियाँ डूब जाया करती है।
और
अभिमान में अक्सर हस्तियां डूब जाया करती है।।"
सबसे पहले तो हम ये जाने की समाजशास्त्र की नजरों में समाज है क्या उसकी अवधारणा क्या है ।
समाज एक समान जाति के लोगो का समूह है।जिसमे समान जाति के लोग अपने सुख दुख खुशी गम त्योहार परम्परा का निर्वहन एक साथ मिल कर करते है।विवाह इत्यादि प्रसंग एक समाज मे ही करते है।
सामाजिक संबंधों का निर्माण तीन स्तरों पर करते है व्यक्ति व्यक्ति के मध्य व्यक्ति समूह के मध्य ओर समूह समूह के मध्य।इन तीनो के मध्य जो भी कार्य होते है आदान प्रदान होते है वो समाज के निर्माण में अपनी भूमिका निभाते है।हमारे व्यवहारों को संतुलित करने का कार्य समाज करता है जिसके लिए वो कुछ नियम बनाता है,ओर उनका पालन उस समाज मे रहने वालों को करना आवश्यक होता है और इसलिए ये भी कहा जाता है कि समाज सम्बन्धो का एक जाल जैसा होता है।ओर इन आधारों पर समाजशास्त्रियों ने मानव जीवन के संबंधों, प्रतिमानों, मूल्यों,आदर्श, प्रथा,मान्यता के विस्तृत ओर व्याप्त जाल को "समाज" की परिभाषा से परिभाषित किया है। समाज के मूल्य प्रथा आदर्श सभी मे समान हो ये आवश्यक नही है हर समाज के अपने मूल्य अपने आदर्श ओर अपने सिद्धान्त हो सकते है और होते है।
गिन्सबर्ग राइट कुले पार्सन्स मैकाइवर जैसे समाजशास्त्रियों की अवधारणा को पढ़े और समझे तो निष्कर्ष में ये कह सकते है कि समाज का वास्तविक आधार सामाजिक संबंध ही है,ओर उसकी एक व्यवस्था है।जिसके अंतर्गत समाज की रक्षा ,कार्यों का विभाजन समूह की एकता और सामाजिक व्यवस्था में स्थिरता मुख्य कार्य हो सकते है।
आज के समय मे समाज की अवधारणा में कुछ बदलाव आए है।
अर्थ की व्यवस्था के लिए व्यक्ति अपने समाज को गांव को छोड़ कर नगरो ओर महानगरो में आये और उन्होंने वह की संस्कृति को अपनाया जिससे कही न कही पुराने मूल्य कमजोर हुए,अंतरजातीय विवाह ने समाज की अवधारणा को बदला है,पहले विवाह के लिए कुछ नियमो का पालन सबके लिए जरूरी था जुसमे जाति व्यवस्था अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी लेकिन अब उसमे भी ढील दी गई है।आज युवा वर्ग का झुकाव समाज से ज्यादा दोस्त पाश्चात्य संस्कृति की तरफ हुआ है उनके लिए समाज मायने रखता है लेकिन अपने सुख और इच्छाओं की पूर्ति ज्यादा महत्व रखती है।
बीसवीं सदी के समाज में कई बदलाव को देखा गया पहले लोग एक व्यक्ति की बात को बिना तर्क के भी स्वीकार कर लेते थे लेकिन आज सही गलत की सोच को व्यक्ति की बातों को तर्क की कसौटी पर परखने में विश्वास रखते है।समय के साथ समाज की अवधारणा में आये बदलाव को स्वीकार करते हुए कुछ नियमो के मूल्यों के निर्धारण में पुनः सोचना चाहिए क्योंकि समाज वो इकाई है जिसने समय समय पर हुए बदलाव को स्वीकार किया है।